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Blog / 30 Oct 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक 2019 (School Education Quality Index 2019)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक 2019 (School Education Quality Index 2019)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): डॉ. नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), प्रो. सुषमा यादव (वाईस चांसलर - बी. पी. एस. यूनिवर्सिटी)

चर्चा में क्यों?

बीते 30 सितंबर को नीति आयोग द्वारा स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक यानी School Education Quality Index रैंकिंग जारी किया गया। इस रैंकिंग के मुताबिक, देश भर में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में एक बड़ा अंतराल देखने को मिला है। इस सूची में देश के 20 बड़े राज्यों में केरल पहले स्थान पर है, जबकि राजस्थान दूसरे और कर्नाटक तीसरे स्थान पर है।

क्या है स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक?

यह एक समग्र शिक्षा सूचकांक है जो नीति आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। इस सूचकांक को तैयार करने में आयोग और मंत्रालय ने शिक्षा गुणवत्ता के सम्बन्ध में कुछ डोमेन तैयार किए हैं और इस डोमेन के आधार पर राज्यों में शिक्षा के मामले में वार्षिक सुधारों का आकलन किया गया है। आकलन के आधार पर नीति आयोग ने यह रिपोर्ट तैयार किया है। इस रिपोर्ट का नाम 'द सक्सेस ऑफ आवर स्कूल्स - स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स' है।

स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक यानी SEQI सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ज्ञान और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने की सुविधा प्रदान करने की कोशिश करता है। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय, विश्व बैंक और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों जैसे प्रमुख हितधारकों समेत एक सहयोग भरी प्रक्रिया के ज़रिए विकसित इस सूचकांक में 30 महत्वपूर्ण संकेतक हैं जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के वितरण का आकलन करते हैं।
भारत में प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता के सटीक आकलन के लिये स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक को दो श्रेणियों- परिणाम तथा शासन और प्रबंधन में विभाजित किया गया है। सूचकांक में 1000 अंक हैं, जिसमें सीखने की प्रक्रिया को सबसे अधिक (1000 में से 600 अंक) भारांक दिया गया है।

रिपोर्ट के महत्वपूर्ण तथ्य

SEQI में - सीखने की प्रक्रिया, पहुँच, समता, बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं, राज्य द्वारा किये गए सर्वेक्षण के आँकड़े और तीसरे पक्ष की पुष्टि के आधार पर राज्यों का आकलन किया गया है। इसके मुताबिक 20 बड़े राज्यों में 76.6% के स्कोर के साथ केरल को प्रथम स्थान हासिल हुआ जबकि उत्तर प्रदेश 36.4% के स्कोर के साथ अंतिम स्थान पर रहा।

  • हरियाणा, असम और उत्तर प्रदेश ने साल 2015-16 के मुकाबले साल 2016-17 के अपने प्रदर्शन में सबसे बेहतर सुधार किया है।
  • पहुँच, समता और परिणाम यानी आउटकम के आधार पर तमिलनाडु का, जबकि सीखने की प्रक्रिया में कर्नाटक का और बुनियादी सुविधा संकेतक के आधार पर हरियाणा का सबसे बेहतर प्रदर्शन रहा।
  • छोटे राज्यों में मणिपुर का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा, जबकि केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में चंडीगढ़ को अव्वल स्थान मिला। ग़ौरतलब है कि पश्चिम बंगाल ने मूल्यांकन प्रक्रिया में भाग लेने से इनकार कर दिया और उसे रैंकिंग में शामिल नहीं किया गया है।

इस सूचकांक का उद्देश्य

इस सूचकांक का मकसद राज्यों का ध्यान इनपुट से आगे बढ़कर आउटपुट की ओर आकर्षित करना है। इसके अलावा राज्यों की शैक्षिक गुणवत्ता में निरंतर वार्षिक सुधारों के लिये एक मानक प्रदान करना, गुणवत्ता में सुधार, सर्वोत्तम साधनों को साझा करना और राज्य के नेतृत्व वाले नवाचारों को बढ़ावा देना भी इसके मकसद में शामिल है।

शिक्षा की जिम्मेदारी किसकी?

शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है। 1976 से पहले शिक्षा राज्य सूची का विषय थी। लेकिन 1976 में किये गए 42वें संविधान संशोधन द्वारा जिन पाँच विषयों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डाला गया, उनमें शिक्षा भी शामिल थी। ग़ौरतलब है कि समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र और राज्य मिलकर काम करते हैं।

नई शिक्षा नीति मसौदे (2019) के प्रमुख बिंदु

शिक्षा नीति 2019 के मसौदे में शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार से तैयार करने की बात कही गई है कि ये देश के हर नागरिक के जीवन से जुड़ सके।

  • शिक्षा का अधिकार कानून का दायरा बढ़ाया जाए.
  • नर्सरी से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई को 5+3+3+4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बांटा जाए।
  • एक राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण गठित किया जाए.
  • शिक्षण के बहु-विकल्पीय तरीके अपनाए जाएं
  • रेमेडियल शिक्षण की पुख्ता व्यवस्था की जाए.
  • नवोन्मेषी शिक्षण उपायों को अपनाया जाए.
  • लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया जाना चाहिए.
  • शिक्षण में तकनीक का इस्तेमाल किया जाए.
  • विषय-वस्तु का भार कम किया जाए.
  • स्तरहीन शिक्षा से छुटकारा पाया जाए.
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय रखने की भी सिफारिश की गई है।
  • मसौदे में तीन भाषाओं की नीति का प्रस्ताव है। जिसमें गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र में मातृभाषा, संपर्क भाषा अंग्रेजी के अलावा तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को अनिवार्य किए जाने की सिफारिश की गई थी।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम

भारत में शिक्षा का अधिकार’संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत मूल अधिकार के रूप में शामिल है। 2 दिसंबर, 2002 को संविधान में 86वाँ संशोधन किया गया था और इसके अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया। इस मूल अधिकार के लिए साल 2009 में नि:शुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right of Children to Free and Compulsory Education-RTE Act) बनाया गया। जिसके बाद 2010 से इसे लागू किया गया। इसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक समावेशन को बढ़ावा देना और माध्यमिक व उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन के नए अवसर की तलाश करना है। इसके तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है।

शिक्षा के लिए चलाई गई योजनाएं

1. प्रारंभिक शिक्षा

  • सर्व शिक्षा अभियान - 2001
  • समग्र शिक्षा
  • मिड डे मील योजना -1995
  • पढ़े भारत बढ़े भारत - 2014

2. राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की योजनाएं - 2009

3. राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) 2013

भारत में साक्षरता दर

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में क़रीब 74.04% लोग साक्षर है। भारत में साक्षरता के मामले में पुरुष और महिलाओं में काफ़ी अंतर है।

  • पुरुषों की साक्षरता दर – 82.14 %
  • महिलाओं की साक्षरता दर – 65.46 % (कारण - अधिक आबादी और परिवार नियोजन की जानकारी की कमी है)

हालाँकि भारत मे साक्षरता पहले के मुक़ाबले काफी बेहतर हुई है। आज़ादी के वक़्त भारत की साक्षरता दर 12 - 18 % ही थी। लेकिन अब भी भारत दुनिया के सामान्य साक्षरता दर -85% के स्तर से काफी पीछे है।

संयुक्त राष्ट्र के तहत भी मिला है शिक्षा का अधिकार

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ सभी को शिक्षा का अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 26 के मुताबिक़ कम से कम शुरुआती दौर में शिक्षा मुफ्त मिलनी चाहिए और शुरुआती शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ शिक्षा मानव व्यक्तित्व के पूर्ण विकास और मालिक स्वतंत्रता के सम्मान के लिए ज़रूरी है।

शिक्षा से जुडी प्रमुख समस्याएँ

1. प्राथमिक शिक्षा की समस्या

  • विद्यालयों की कमी - भारत में लगभग 6 लाख स्कूल के कमरों की कमी है।
  • शिक्षकों की कमी - कम शिक्षकों के नाते कई कक्षाओं का भार ऐसे में सभी बच्चों पर ध्यान देना संभव नहीं। शिक्षा के अधिकार कानून में प्रत्येक 35 विद्यार्थियों पर एक सिर्फ शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है। लेकिन इस लक्ष्य को अभी हासिल नहीं किया जा सका है।
  • बुनियादी ढांचे में कमी - बिजली, पानी, शौचालय, बाउंड्री दीवार, लाइब्रेरी, कंप्यूटर जैसी बहुत कम ही स्कूलों में सही है। सरकारी स्कूलों में शौचालय होने के बावजूद साफ़ सफाई और पानी की कमी। जिसके चलते लड़कियों का स्कूल छोड़ना। स्कूलों में क़रीब 90 प्रतिशत से अधिक सार्वजनिक धन अध्यापकों के वेतन और प्रशासन पर ही खर्च हो जाता है।
  • ग़रीबी/बाल मज़दूरी - मिड डे मील और मुफ़्त शिक्षा के बावजूद भी क़रीब 29% छात्र बिना 5वीं की पढ़ाई पूरी किए ही स्कूल छोड़ देते हैं।
  • ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी - शिक्षकों के ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैये के चलते सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को ज्ञान नहीं बढ़ पाता। शिक्षकों के समर्पण भाव से पढ़ाने में कमी आई है। इस अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी के चलते में शिक्षक स्कूल नहीं जाना चाहते हैं।
  • ASER (ANNUAL STATUS OF EDUCATION REPORT) के मुताबिक़ ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार ने शिक्षा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में भले ही निवेश किया है लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है।

2. माध्यमिक शिक्षा की समस्या

  • माध्यमिक स्तर की शिक्षा में स्कूलों की कमी,
  • पाठ्यक्रमों की उपलब्धता न होना
  • सामग्री के मामले में भी पर्याप्त विकल्प न होना
  • लाखों शिक्षक संविदा पर काम कर रहे हैं और उनमें से आधे प्रशिक्षित भी नहीं हैं.
  • केवल 60 प्रतिशत बच्चे 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं। पारिवारिक विवशताओं और सामाजिक हालात की वज़ह से बच्चे साधारण रोज़गार की ओर चले जाते हैं।
  • अध्ययन बताता है कि सेकेंड्री स्कूल में अच्छे अंक लाने के दबाव से छात्रों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बहुत तेज़ी से बढ़ रही है.

3. उच्च शिक्षा की समस्याएं

साल 2017 में मानव संसाधन विकास समबन्धी स्टैंडिंग कमेटी ने भारत में उच्च शिक्षा के समक्ष चुनौतियाँ और समस्याएं पर अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

  • संसाधनों की कमी - UGC के बजट का लगभग 65% केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनके कॉलेजों द्वारा उपयोग किया जाता है, जबकि राज्य विश्वविद्यालयों और उनके संबद्ध कॉलेजों को शेष 35% ही मिलता है।
  • शिक्षकों की कमी - UGC के मुताबिक़ कुल स्वीकृत शिक्षण पदों में से 35% प्रोफेसर, 46% एसोसिएट प्रोफेसर और क़रीब 26% सहायक प्रोफेसर के पद खाली हैं।
  • शिक्षकों की जिम्मेदारी और प्रदर्शन - विश्विद्यालय और कॉलेजों में प्रोफेसरों की ज़िम्मेदारी और प्रदर्शन को सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है.
  • रोज़गार परक कौशल का अभाव - तकनीकी शिक्षा के छात्रों में रोज़गारपरक कौशल का अभाव देखा गया है।
  • संस्थानों का एक्रेडेशन - उच्च शिक्षण संस्थानों को एक्रेडेशन देना उच्च शिक्षा के रेगुलेटरी अरेंजमेंट्स का महत्वपूर्ण अंग होना चाहिए।
  • सरकारें शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिये हमेशा काम करती रहती हैं। लेकिन ऐसे कामों में राज्य की ज़रूरत के हिसाब से काम नहीं किया जाता है जो कि बाधा है।
  • भारत में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता एक बहुत बड़ी चुनौती है। टॉप-200 विश्व रैंकिंग में बहुत कम भारतीय शिक्षण संस्थानों को जगह मिल पाती है।
  • भारत का उच्च शिक्षा तंत्र अमेरिका, चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बडा उच्च शिक्षा तंत्र है। विगत 50 वर्षों में देश के विश्वविद्यालयों की संख्या में 11.6 प्रतिशत, महाविद्यालयों में 12.5 प्रतिशत, विद्यार्थियों की संख्या में 60 प्रतिशत और शिक्षकों की संख्या में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है। लेकिन मुश्किल ये है कि इसके बावजूद भी उच्च शिक्षा की सुलभता का सपना साकार नहीं हो पा रहा है।